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रहस्यमाई चश्मा भाग - 35




फिर भी नियमित मेरे पिता जी यह उस समय दौर का कठिन कार्य करते लगभग एक माह बाद सेठ गोवर्धन ने मेरे पिता जी को बुलाया और बोले यशोवर्धन ना तो मेरा कोई गुरु है ना ही मैं इस प्रकार कि तकीयणुकीसी बातों में विश्वास रखता हूँ मैं तो यह देखना चाहता हूँ था कि तुममें मैथिल परंपरा का का पराक्रम है भी या समय के संघर्षो ने खोखला या समाप्त ही कर दिया है मेरी कोई अपनी संतान नही है मैं तुम्हे अपने संतान का दर्जा देता हूँ,,,,

 त्रिशाला को तो ऐसा लगा जैसे उनकी कोख ही धन्य हो गयी जिसे उन्होंने जन्म जन्म तो नही दिया लेकिन कोख से जन्मे संतान से अधिक प्रिय थे सेठ गोवर्धन एव त्रिशाला जी के लिये जो मेरे मानस दादा दादी ही हुये सेठ गोवर्धन जी ने मेरे पिता को व्यवसायिक गुण दांव पेंच के व्यवहारिकता के अनुभवों की शिक्षा दी अपने व्यवसाय मिलो आदि धन दौलत मिल आदि मेरे पिता जी के हवाले कर दिया मेरे पिता जी ने भी सगे बेटे से अधिक सेठ गोवर्धन एव त्रिशला कि आशा उम्मीदों पर खरे उतरे।अशरफ मियां शुभा और मंगलम की बात चीत को बड़े ध्यान से सुन रहे थे बीच बीच मे कुछ बोल देते शुभा बोली गोवर्धन सेठ और त्रिशला ने अपनी मृत्यु से पूर्व ही अपने जीवन एव जीवन की उपलब्धियों कि पूरी जिम्मेदारी मेरे पिता को सौंप दिया था जिसे पूरी ईमानदारी से निर्वहन भी किया मेरे पिता जिन पर मुझे अभिमान है ।

अतः मेरे पिता जी सदैव कहते है कि मुझे शेर पुर की माटी ने ही सब कुछ दिया है धन दौलत प्रतिष्ठा अतः मैं कही नही जानूँगा और इसी मिट्टी में मिल जाऊंगा जिस प्रकार सेठ गोवर्धन कि पीढ़ियों ने इसी मिट्टी में जन्म लिया और मिट्टी में ही मिल गए इसी कारण भविष्य कि बहुत नकारात्मक संभावनाओं के वावजूद भी यही रहना चाहते है आपके पिता जी ने भविष्य को भांप लिया है जो और सही निर्णय ही लिया होगा,,,,,,

 कॉलेज से शुभा का घर छ किलोमीटर एव मंगलम का घर आठ नौ किलोमीटर दूर था और टांगे से जाने एक से सवा घण्टे का समय लगता था इस बीच शुभा और मंगलम एक दूसरे से बहुत घुल मिल गए औऱ दोनों ने अपनी पारिवारिक एव व्यक्तिगत बातों को एक दूसरे को बताई मंगलम को तो शुभा पहली दृष्टि में ही हृदय कि गहराई तक उतर चुकी थी वह तो अवसर खोजते यदि प्रिंसिपल साहब उन्हें शुभा को छोड़ने का आदेश न दिया होता मंगलम चौधरी कुछ हॉस परिहाश कि नियत से बोला ना तो मिथिलांचल का मशहूर सौराठ का वर मेला है ना ही पूर्व से कोई सहमति असहमति का एहसास है तब मेरा मन यह क्यो कह रहा है कि यह टांगे का सफर ही जीवन का सुखद शुभारम्भ शुभा शर्मा गयी कोचवान असरफ मंगलम कि बाते सुनकर और शुभा द्वारा सुर्ख गुलाबी चेहरे को झुका कर शांत हो जाने पर बोला मंगलम मियां मुबारख हो सही फरमान जनाब मुझे भी यकीन था कि आज मेरा तांगा किसी नेक काम आएगा और लो हो गया नेक काम मोगब्बत के दो किरदारों को मिला दिया मेरे डांगे पर परवरदिगार ने यकीनन आप दोनों कि जोड़ी दुनियां कि खूबसूरत एव मशहूर इज़्ज़तदार जोड़ियों में शुमार होगी,,,,,


शुभा का घर आ गया शुभा उतर कर अपनी हवेली में मंगलम का आभार व्यक्त करके चल पड़ी यशोवर्धन दूर से ही देख रहे थे शुभा के करीब आते ही बोले शुभा बिटिया तुम्हारे साथ जो नवजवान था वह कौन था जब शुभा ने मंगलम के विषय मे बताया तब मंगलम चौधरी ने कहा बेटी उंसे बुलाओ शुभा ने कहा वह तो चला गया होगा तभी यशोवर्धन ने हवेली के चौकीदार को आदेश दिया कि वह दौड़कर टांगे का पीछा करे और उसे बुला कर ले आये मनसा राम मंगलम कि हवेली का चौकीदार भागे भागे गया और अशरफ के टांगे को वापस हवेली पर ले आया और अशरफ से बोला चलो मालिक ने बुलाया है,,,,,,

अशरफ मंगलम चौधरी से बोला साहब अभी मैं आता हूँ और कहता हुआ मनसा राम कि हवेली में दाखिल हो गया टांगे के कोचवान को देखते ही यशोवर्धन ने कहा टांगे पर बैठे नौजवान को नही बुलाया मनसा राम हवेली के बाहर खड़े टांगे के पास गया और बोला साहब आपको भी मालिक बुला रहे है मंगलम को पता नही क्यो अपराध बोध होने लगा वह सोचने लगा उसने कौन सी ऐसी बात या हरकत कर दिया जो शुभा को नागवार लगी और घर पहुंचते ही शिकायत कर दिया और उसके घर वालो ने टांगे को वापस बुलाया लेकिन उसके पास शुभा कि हवेली में जाना ही पड़ा,,,,,


 मंगलम को देखते ही बोले तशरीफ़ रखो नौजवान मंगलम कुर्सी पर बैठ गया उसके बैठने के बाद हवेली की परंपरा के अनुसार उसके लिए नौकर नास्ता लेकर आया और अशरफ के लिये भी आशरफ़ ने जो कुछ खाते बना जल्दी जल्दी खाया और बाकी यशोवर्धन की अनुमति से अंगौझा में बांध कर यशोवर्धन से जाने की अनुमति के लिये निवेदन किया यशोवर्धन ने असरफ को वाजिफ भाड़ा से चार गुना अधिक देकर असरफ को जाने कि इजाज़त दे दी,,,,,,


असरफ के जाने के बाद यशोवर्धन मंगलम कि तरफ़ मुखातिब होकर बोले आप कहां से है आपके पिता जी का क्या नाम है आदि आदि पूछा मंगलम ने अपने पिता का नाम और परिचय बतलाया जिसे सुनते ही यशोवर्धन उछल पड़े औऱ बोले तो आप इतने बड़े रईस के रईसजादे है आज तो मेरा ही सौभाग्य है कि मेरी हवेली में तुम्हारे शुभ पग शुभा के साथ ही पड़े आज यह हवेली एक बार पुनः धन्य हुई यशोवर्धन ने शुभा को आवाज लगाई शुभा दौड़े दौड़े आयी शुभा के आते ही यशोवर्धन ने उससे पूछा बेटी तुम जानती हो यह नवजवान कौन है इसका नाम क्या है ?




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2 Comments

kashish

09-Sep-2023 07:33 AM

Amazing part

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madhura

06-Sep-2023 05:13 PM

Very nice

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